भास्कर ओपिनियन-खेल में राजनीति: कुश्ती संघ के चुनाव में पहलवानों की नहीं, राजनीतिक बलवानों की चली
कुश्ती और कुश्ती संघ को लेकर जाने कितनी कुश्तियाँ लड़ी गईं लेकिन लगता है मैच फ़िक्स था। हुआ वही जो ताकतवर करना चाहता था। बृजभूषण शरण सिंह ने तमाम आंसुओं और दर्दों को दरकिनार करते हुए अपनी ही चलाई। उन्हीं का एक करीबी कुश्ती संघ का सर्वे सर्वा बनकर बैठ गया।सड़़क दुर्घटना का मामला दर्ज
पहलवानों से सरकार द्वारा किए गए सारे वादे झूठे निकले। किसी का कोई ज़ोर नहीं चला। कुछ महिला पहलवान इस पूरे घटनाक्रम के बाद बिलख – बिलखकर रोती रहीं लेकिन फ़ैसला बदलने की न उनमें ताक़त थी और न ही वे ऐसा कर सकती थीं। एक ने तो कुश्ती से ही संन्यास ले लिया।
बाक़ायदा प्रेस कान्फ्रेंस करके संन्यास की घोषणा कर दी। जीत के दम्भ में चूर कुश्ती संघ के किसी पदाधिकारी को इस सब का कोई अफ़सोस नहीं हुआ। वे मज़े से खिलखिलाते रहे। मालाएँ पहनते रहे। कहते हैं – जो संजयसिंह जीते वे पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण के बिज़नेस पार्टनर हैं।
कुल मिलाकर कुश्ती संघ की सत्ता अब भी बृजभूषण शरण सिंह के पास ही रहेगी। जबकि विरोध कर रहे पहलवानों का कहना है कि सरकार ने उनसे वादा किया था कि इस बार बृजभूषण के किसी करीबी को चुनाव नहीं लड़ने देंगे लेकिन सरकार अपने वादे से पीछे हट गई।
वैसे भी इस सब के लिए सरकार के पास वक्त कहाँ है? वह तो अभी तक राजस्थान और मध्यप्रदेश के मंत्रियों के नाम तय करने में लगी हुई है। कहा जाता है सरकार वही जिसे अपने वादे याद न रहे। इसलिए कुश्ती संघ के चुनाव में कौन जीता, कौन हारा, इससे सरकार का भला क्या वास्ता?सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X डाउन हुआ: सुबह करीब 11 बजे से यूजर पोस्ट नहीं देख पा रहे, दुनियाभर में इसके 33 करोड़ यूजर
वैसे कुश्ती संघ के इस चुनाव में मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव भी खड़े हुए थे लेकिन अफ़सोस, उन्हें मात्र पाँच वोट ही मिल सके। अब कोई एक बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन गया तो उसे कुश्ती संघ के किसी पद की क्या ज़रूरत होगी। इसलिए इस हार के बावजूद मोहन यादव खुश ही होंगे।
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