एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र तीर्थ के मंदिर हाल में भक्ति योग आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत अमृत कथा का शुक्रवार को समापन हो गया। समापन अवसर पर विशाल हवन व भंडारे का आयोजन किया गया। हवन में सैंकड़ों लोगों ने आहुति डालकर समाज की सुख शांति की कामना की।
सफीदों, नगर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र तीर्थ के मंदिर हाल में भक्ति योग आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत अमृत कथा का शुक्रवार को समापन हो गया। समापन अवसर पर विशाल हवन व भंडारे का आयोजन किया गया। हवन में सैंकड़ों लोगों ने आहुति डालकर समाज की सुख शांति की कामना की।
वहीं भंडारे में असंख्य लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। समापन सत्र को संबोधित करते हुए स्वामी डा. शंकरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि भागवत कथा सुनने से व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद् भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण से मृत्यु को सुधारा जा सकता है। क्योंकि जीवन की महान सच्चाई मौत है कोई भी जीव इससे बच नहीं सका है।
संसार में जो भी जीव आता है। उसे संसार छोड़कर अवश्य जाना पड़ता है, आवागमन ही संसार की रीत है। उन्होंने कहा कि जिस काम के लिए जीव धरती पर आया है, वह उस काम को करना ही भूल गया है। भगवान का स्मरण ही एक ऐसा उपाय उपाय है। जिससे जीव मनुष्य प्रभु चरणों में बिना कष्ट के चला जाता है। उन्होंने कहा कि जीव ही 84 के चक्कर में उलझा रहता है। जिस प्रकार जीवन जिया जाता है, उसी प्रकार मृत्यु को सुधारना आवश्यक है और इसे सत्संग से और भगवान की शरण में जाकर ही सुधारा जा सकता है ताकि जीवात्मा मुक्त होकर परमात्मा के चरणों को प्राप्त कर सके।