बुराई पर अच्छाई की विजय ही रामायण है: मुनि नवीन चंद्र कहा: रावण को किसी ओर ने नहीं बल्कि उसकी वासना ने मारा

एस• के• मित्तल   
सफीदों,     बुराई पर अच्छाई की विजय ही रामायण है। उक्त उद्गार मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने प्रकट किए। वे नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में दशहरा पर्व पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि रामानुजाचार्य ने भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र सुनना शुरू किया था और वर्ष 1063 में धीरे-धीरे पात्र बनाकर रामलीला दिखानी शुरू की थी। इस प्रक्रिया में उन्होंने 9 दिन रामलीलाएं दिखाई और दसवें दिन रावण का वध दिखाया गया। उन्होंने कहा कि 5 इंद्रियां, 4 कषाए व एक मन हमारे शत्रु हैं।
रामलीला इसलिए दिखाई गई ताकि हमारा मन पापों से दूर हो सके और हमारा मन धर्म में लगे। लंकापति रावण पापी नहीं था। वह भी विद्वान ब्राह्मण था परंतु उसकी तृष्णा ने उसे पापी बना दिया। जो रूलाए वही रावण कहलाता है। रावण के राज्य में चारो ओर रोना ही रोना था। रामायण से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें कभी शिकार नहीं खेलना चाहिए और बिना सोचे समझे वचन नहीं देना चाहिए। राजा दशरथ कामवासना से वशीभूत होकर महारानी कैकेयी को अपना सबकुछ मानकर श्रीराम को वन भेजने का वचन दे बैठे थे। राम ने अपने पिता की आज्ञा के लिए राज्य का त्याग करके 14 वर्षों के लिए वन में चले गए, यह उनकी पितृभक्ति दिखाता है। वहीं भाई के प्रति अगर प्रेम देखना है तो भरत में देखो। जिन्होंने अपना हित छोड़कर भाई का साथ दिया और भाई श्रीराम की खडाऊं वन जाकर लाए और सिंहासन पर रखकर उनको ही राजा मानकर अयोध्या का राजपाट चलाया। भरत से बड़ी भातृप्रेम की कोई मिसाल इस धरा पर कोई हो नहीं सकती। हर पत्नी को पति के सुख-दुख में साथ निभाना चाहिए। उसी के अनुरूप माता सीता अपने पति श्रीराम के साथ वन में गईं और अनेक कष्टों को सहा। रामायण हमें स्वार्थ छोड़ने और बलिदान की भावना प्रबल करने का संदेश देती है। रानी सुमित्रा ने अपना स्वार्थ नहीं देखा और अपने बेटे लक्ष्मण को बिना सोचे समझे श्रीराम के साथ वन में भेज दिया। उन्होंने कहा कि अंंधी वासना पर लगाम लगाना बहुत जरूरी है।
रावण को किसी ओर ने नहीं बल्कि उसकी वासना ने मारा है। वहीं रामायण से यह भी सीख लेने की भी जरूरत है कि अपने घर की बात कभी भी बाहर नहीं करनी चाहिए क्योंकि घर का भेद ही लंका ढहाता है। इसका उदाहरण रामायण में रावण के भाई विभीषण के रूप में विद्यमान है। विभिषण ने ही राम को सोने की लंका के सारे भेद बताए और रावण, मेघनाथ व कुंभकर्ण सहित बड़े-बड़े महारथी धराशायी हो गए। उन्होंने कहा कि युद्ध एक बाह्य व एक भीतरी दो प्रकार से होता है। हमें बाह्य प्रकार के युद्ध से बचना चाहिए और उसके विपरीत हमें अपनी आत्मा से युद्ध करके उसे पवित्र बनाना चाहिए। दशहरे के दिन कान के ऊपर जौं की खेती रखने का मतलब है कि हमें कान पर संयम रखना है और गलत बातों को कान में नहीं आने देना चाहिए। आज वर्तमान माहौल में घर-घर में लंका और घर-घर में रावण है और इतने रावणों को मिटाने के लिए इतने सारे राम कहां से आएंगे यह एक सोचने का विषय है।

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