फसल के अवशेषों को जलाने से पर्यावरण के साथ-साथ पड़ता है स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव : उपायुक्त डॉ• मनोज कुमार

एस• के• मित्तल
जींद, उपायुक्त डॉ मनोज कुमार ने बताया कि ज्यादातर किसान कम्बाईन हार्वेस्टर के माध्यम से अपने खेतों में खडी गेंहू की फसल कटवाते है और अगली फसल की बुआई करने की जल्दी में खेतों की सफाई करने के लिए फसल के बचे शेष अवशेषों को उनके द्वारा जला दिया जाता है।

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जिस कारण से पर्यावरण के साथ-साथ व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पडता है। उन्होंने कहा कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद आवश्यक कार्बन सामग्री, सुक्ष्म पोषक तत्व तथा सूक्ष्म जीव नष्ट होने के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती है और पैदावार में भी कमी आती है। फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुंए के कारण लोगों के फेफडों पर सबसे अधिक प्रभाव पडता है, जिस कारण खांसी एवं घुटन महसूस होती है। जिन व्यक्तियों को दिल व फेफडो से सम्बन्धित बिमारी है ये इसके कारण सबसे अधिक प्रभावित होते है जिससे अस्थमा व अन्य कई गम्भीर बिमारियां हो सकती है । इसके अलावा वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होती है। साथ लगते खेतों में पकी खड़ी फसल में आग लगने की सम्भावना अत्याधिक बढ जाती है। फसल अवशेषों से निकला धुआं वातावरण को सबसे अधिक प्रदूषित करता है। फसल अवशेष जलाने से जिले में पशुओं के चारे की कमी होती है व जिला एवं प्रदेश को वित्तीय हानि भी उठानी पड़ती है। फसल अवशेषों को जलाना वातावरण व स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है, इस सम्बंध में न्यायालयों एवं उच्च प्राधिकरणों द्वारा अपने स्तर पर मोनिटर किया जा रहा है।

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उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबन्धन कार्यक्रम के तहत जमीनी स्तर पर फसल अवशेष की घटनाओं पर माननीय हरित व्ययाधिकरण, हरियाणा सरकार से प्राप्त होने वाले दिशा-निर्देशों की अनुपालना में गेहूं की फसल के अवशेषों को जलाने से रोकने के लिए ग्राम स्तर, खण्ड स्तर व उप मण्डल स्तर पर फलाईंग स्कावयर्ड के रूप में विवरण अनुसार डयूटियां लगाई जाती है। इसमें राजस्व विभाग के पटवारियों को किसान कल्याण विभाग के कर्मचारियों के साथ जोडते हुए ग्राम स्तर पर नोडल नियुक्त किया जाता है ताकि प्रभावित क्षेत्र को चिन्हित करने में किसी प्रकार की दिक्कत न आये। सूचि अनुसार गठित की गई टीमें दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध उचित प्रावधानों के तहत जुर्माना लगाने की हकदार होंगी।

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