पानीपत की ‘बुलबुल द तवायफ’: आजादी के लिए अंग्रेजी हुकुमत से लड़ी; IAS का किया था मर्डर, अंग्रेजों ने दी थी फांसी की सजा

 

कुछ इस तरह दिखती थी बुलबुल, जिसके दीदार के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। इसी खूबसूरती का दीवाना होकर अंग्रेज कलेक्टर भी करनाल से यहां पहुंचा था।

इतिहास गवाह है कि भारतीय महिलाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस के जोहर की ऐसी बेजोड़ मिसाल कायम की है, जो आज भी लोगों में प्रेरणा का स्त्रोत बनी हैं। ऐसे ही एक मिसाल बुलबुल नाम की महिला ने पेश की। दरअसल ये किस्सा 1850 में लखनऊ के पुराने सिया मोहल्ले में पैदा हुई बुलबुल का है।

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लखनऊ में पिता मुमताज हसन की मौत के बाद अपनी मां और छोटी बहन गुरैया के साथ बुलबुल पानीपत में आकर बस गई। बचपन में बुलबुल ने अंग्रेजों के जुर्म सहे। इस बीच पेट की आग और घर की जरूरत पूरी करने के लिए बुलबुल की मां वेश्या बनने पर मजबूर हुई।

उसने पानीपत के बाजार में कोठा चलाना शुरू कर दिया। अब बुलबुल को अभी इस कोठे पर जाना शुरू हो गया। थोड़े ही समय में बुलबुल के दीदार के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचने लगे। इतिहासकार रमेश चंद्र पुहाल बताते हैं कि अंग्रेजों की जुर्म की दास्तान से बुलबुल काफी खफा रहती थी और अंग्रेजों से नफरत किया करती थी।

इतिहासकार रमेश पुहाल के मुताबिक पानीपत शहर में मौजूदा सुभाष बाजार में ये जगह बुलबुल के कोठे के नाम से मशहूर था।

इतिहासकार रमेश पुहाल के मुताबिक पानीपत शहर में मौजूदा सुभाष बाजार में ये जगह बुलबुल के कोठे के नाम से मशहूर था।

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हाथ-पैर बांध कर फेंका था कलेक्टर को
साल1888 में जिला करनाल के अंग्रेज कलेक्टर बुलबुल के कोठे पर जा पहुंचे। बुलबुल ने पूछा श्रीमान जी की तारीफ? तो कलेक्टर ने टूटी-फूटी हिंदी में जवाब में बताया कि मैं करनाल जिला कलेक्टर पीटर स्मिथ जोहन हूं और मैं तुम्हें चाहता हूं। क्या मुझे आप खुश कर सकते हैं और आज रात मैं तुम्हारे कोठे पर ही रुकूंगा।

आसमान में उड़ते परिंदे को पहचानने वाली तवायफ बुलबुल अंग्रेज की इस मंशा को समझ गई। उसने अपने कोठे पर मौजूद लड़कियों को इशारा करते हुए एक जगह पर इकट्ठा होने के लिए कहा और कपड़े धोने वाले डंडों से कलेक्टर पर हमला बोल दिया।

उसके हाथ पांव बांधकर सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया। जिससे कलेक्टर की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस वहां पहुंची और बुलबुल को गिरफ्तार कर लिया गया।

भारत की पहली महिला, जिसे दी गई थी फांसी
इतिहासकार रमेश पुहाल के मुताबिक पानीपत के रहने वाले लोग वकील पर वकील बुलाते रहे पर कोई भी बुलबुल को इस केस से बाहर नहीं निकाल पाया। 4 वकीलों ने अंग्रेज पुलिस और पुलिस के नकली गवाहों को अदालत में झूठा साबित कर भी दिया।

अंग्रेज सेशन जज विलियम हडसन ने बुलबुल को 10 मार्च सन 1889 दिन रविवार अदालत लगाकर मौत की सजा सुनाई। इसके बाद भी बुलबुल मायूस नहीं हुई। अंग्रेज सरकार ने 8 जून सन 1889 को पानीपत के संजय चौक पर जहां आज हैदराबादी अस्पताल है।

वहां अंग्रेजी जल्लादों के हाथ फांसी पर लटका दिया। ऐसा दावा है कि बुलबुल, भारत की पहली महिला थी, जिसे फांसी दी गई थी। डॉक्टरों की जांच पड़ताल के बाद सिया इधर का इमामबाड़ा कब्रिस्तान, जहां आज ईदगाह कॉलोनी है, वहां अंग्रेजी पुलिस की सख्त पहरेदारी में दफन कर दिया। उस समय के बाद उस वेश्या बाजार का नाम बुलबुल बाजार से सर्राफा और सुभाष बाजार के नाम से जाना जाता है।

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