धर्म भारतीय संस्कृति की सुख और शांति का मूल है: दंडीस्वामी निगमबोध तीर्थ

एस• के• मित्तल
सफीदों,      धर्म भारतीय संस्कृति की सुख और शांति का मूल है। उक्त उद्गार वेदाचार्य दंडीस्वामी निगमबोध तीर्थ ने प्रकट किए। वे नगर की गुरूद्वारा कालोनी स्थित श्री हरि संकीर्तन भवन में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब भी जीवन में हम सुख और शांति का अनुभव करते हैं वह हमारे धर्म का ही फल होता है। धर्म जीव को इस लोक में और परलोक में सब प्रकार की सुख-सुविधा प्रदान करता है। इसलिए धर्म की जय मनाते हैं और अधर्म इसके विपरित है इसलिए उसका नाश मनाते हैं क्योंकि वह दु:ख और अशांति का मूल है। जब भी जीवन में हम दु:ख और अशांति का अनुभव करते हैं वह हमारे पाप का ही फल होता है। धर्म वह है जिसको सब लोग चाहते हैं। सदा सत्य बोलना, किसी की निंदा ना करना, कटु वचन ना बोलना, किसी को दु:ख नहीं पहुंचाना, चोरी ना करना, बहन-बेटी को बुरी दृष्टि से ना देखना व सेवा कार्य करना ही धर्म है। उन्होंने कहा कि प्रात:काल से सांयकाल तक जन्म से मरण तक प्राणी मात्र की जितनी प्रवृतियां है वे सब सुख तथा शान्ति के लिए होती है।
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सुख व शांति धर्म के बिना नहीं मिल सकती इसलिए धर्म का आचरण करना चाहिए। धर्म का अवसर होने पर भी लोग धर्म का आचरण नहीं करते और पाप करने की कोई सुख-सुविधा नहीं है फिर भी पाप को छिप-छिपकर प्रयत्नपूर्वक करते हैं। कैसा आश्चर्य है कि मनुष्य अमृत को छोड़कर विष का पान करता है। प्राणियों को बार-बार विचार करना चाहिए कि आज हमने क्या पुण्य किया है या क्या पाप किया है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि वे पापाचार से बचकर सदैव पुण्य के कार्य करें। हर मनुष्य को अपने जीवन का कुछ समय व धन समाज व जरूरमंदों की सेवा में लगाना चाहिए।
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