एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि उन्होंने कहा कि धर्म के साथ इच्छाओं को न जोड़े। जैन धर्म में अहिंसा और तपस्या करने वाले को भी देवता माना जाता है। देवता अमर होते हैं और उनकी उम्र बड़ी होती है। मनुष्य को हमेशा धर्म के रास्ते पर चलना चाहिए। धर्म कल्याणकारी है और मनुष्य को मुक्ति देने वाला है। जैन धर्म में भी देवलोक को भी संसार माना गया है। धर्म करते हुए भी अगर मन में शांति नहीं है तो वह एक दिखावा के समान है। जिस प्रकार मनुष्य को यह पता है कि उसका पेट खराब है उसके बावजूद भी वह खाने पीने से बाज नहीं आता।
सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि उन्होंने कहा कि धर्म के साथ इच्छाओं को न जोड़े। जैन धर्म में अहिंसा और तपस्या करने वाले को भी देवता माना जाता है। देवता अमर होते हैं और उनकी उम्र बड़ी होती है। मनुष्य को हमेशा धर्म के रास्ते पर चलना चाहिए। धर्म कल्याणकारी है और मनुष्य को मुक्ति देने वाला है। जैन धर्म में भी देवलोक को भी संसार माना गया है। धर्म करते हुए भी अगर मन में शांति नहीं है तो वह एक दिखावा के समान है। जिस प्रकार मनुष्य को यह पता है कि उसका पेट खराब है उसके बावजूद भी वह खाने पीने से बाज नहीं आता।
उन्होंने कहा कि श्रावक वही है जो व्रती हो। श्रावक के लिए व्रत जरूरी है और साधु के लिए पांच महाव्रत आवश्यक हैं। धर्म में सकाल मरण व अकाल मरण दो तरह के मरण बताए गए हैं। जो इस संसार में जन्मा है उसका मरण निश्चित है और जो मारेगा वह फिर से जन्म लेगा। केवल वही व्यक्ति दोबारा जन्म नहीं लेते जो ज्ञानी होते हैं और उनकी मृत्यु भी अंतिम होती है।
जिसके मन की मृत्यु हो जाती है उनकी आत्मा से परमात्मा बन जाती है। जब हम राग द्वेष से छूटेंगे तो ही आत्मा परमात्मा में लगेगी। उन्होंने कहा कि मानव के अपने जीवन काल, में शारीरिक कर्मो का फल उसे ही भोगना पड़ता है। इस प्रकार से जन्म एवं मृत्यु का चक्र लगातार चलता रहता है। आत्मा को अविनाशी माना गया है। क्योंकि आत्मा न तो मरता है और न ही जन्म लेता है। मोक्ष का अर्थ है आत्मा द्वारा अपना और परमात्मा का दर्शन करना। आत्मा को मोक्ष भगवान की कृपा से प्राप्त होता है। भगवान की कृपा उन्ही आत्माओं पर होती है जिन्होंने शरीर में रहते हुए अच्छे कर्म किए हों।