नवीन चंद्र महाराज की पावन छत्रछाया में परमेश्वरी देवी ने स्वेच्छा से लिया संथारा
परमेश्वरी देवी के दर्शनों के लिए दर्शनार्थियों का लगा तांता
शांति समाधि का नाम है संथारा: मुनि नवीन चन्द्र
एस• के• मित्तल
सफीदों, जैन धर्म की अनुयायी 82 वर्षीय परमेश्वरी देवी अपने आप को तप की पावन भट्ठी में तपाकर कुंदन बना रही है। परमेश्वरी देवी ने नवीन चंद्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज की पावन उपस्थिति में संथारा ग्रहण कर लिया है। बता दें कि संथारा साधिका परमेश्वरी देवी स्व. लाला प्यारेलाल जैन की पुत्रवधू एवं स्व. लाला सदानंद जैन (सिंघाना वाले) की धर्मपत्नी है। उनके संथारा ग्रहण करते ही जैन धर्मालंबियों सहित समस्त समाज में श्रद्धाभाव उमड़ रहा है। नगर के असंख्य लोग हर रोज परमेश्वरी देवी के दर्शन करने के लिए उनके निवास स्थान पर जा रहे हैं।
सफीदों, जैन धर्म की अनुयायी 82 वर्षीय परमेश्वरी देवी अपने आप को तप की पावन भट्ठी में तपाकर कुंदन बना रही है। परमेश्वरी देवी ने नवीन चंद्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज की पावन उपस्थिति में संथारा ग्रहण कर लिया है। बता दें कि संथारा साधिका परमेश्वरी देवी स्व. लाला प्यारेलाल जैन की पुत्रवधू एवं स्व. लाला सदानंद जैन (सिंघाना वाले) की धर्मपत्नी है। उनके संथारा ग्रहण करते ही जैन धर्मालंबियों सहित समस्त समाज में श्रद्धाभाव उमड़ रहा है। नगर के असंख्य लोग हर रोज परमेश्वरी देवी के दर्शन करने के लिए उनके निवास स्थान पर जा रहे हैं।
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बता दें कि करीब 3 महीने पूर्व परमेश्वरी देवी को कुछ शारीरिक दिक्कतें हुई और उनका खाना पीना कम हो गया। उन्होंने 7 द्रव्यों जैसे चाय, दूध, खिचड़ी, दलिया, बिस्किट, रस व पानी को छोड़कर अन्य पदार्थ आजीवन ना खाने का प्रण ले लिया। उनका यह व्रत करीब एक महीने तक चला और उसके बाद परमेश्वरी देवी ने सिर्फ 2 समय गर्म जल को छोड़कर अन्य 6 द्रव्यों को भी ग्रहण करना बंद कर दिया। एक महीने तक दो समय गर्म जल पर रहकर परमेश्वरी देवी ने मास खमन किया। उसके बाद उन्होंने 11 अगस्त को सुबह करीब पौने सात बजे अपनी पूरी चेतना में जैन विधि से संथारा ग्रहण कर लिया। उनके संथारा ग्रहण करते ही उनका पूरा घर एक धर्मस्थान के रूप में तबदील हो गया है और उनके दर्शनों के लिए लोगों का हजूम उमड़ पड़ा।
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इसके अलावा परमेश्वरी देवी के कक्ष में जैन धर्म के अनुसार मंगलपाठ व अन्य पूजा-अर्चना चल रही है। परमेश्वरी देवी के संथारा लेने के संकल्प पर बोलते हुए संघ शास्ता श्री सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य एवं संघनायक श्री नरेश चंद्र महाराज के आज्ञानुवर्ति नवीन चंद्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि जैन धर्म में संथारे का विशेष महत्व है और आत्मा के कल्याण का विशेष मार्ग है। इस संसार में जो जन्मा है उसकी मृत्यू निश्चित है। जन्म और मृत्यू का नाम ही संसार है। जन्म और मृत्यू के बीच में जो अवस्था है, वहीं जीवन है। संथारा ग्रहण करने पर मनुष्य होशो हवास में जाता है। उस पवित्र आत्मा के मन में कोई राग, द्वेष व विकार नहीं होता। उसकी आत्मा को शुद्ध करके मृत्यू होती है। शांत और अच्छे भाव से शरीर का त्याग होता है।
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विनोवा भावे ने भी करीब 9 दिनों तक जैन विधि से संथारा ग्रहण करके देवलोक गमन किया था। संथारा में मनुष्य की ना जीने की और नाही मरने की इच्छा होती है। संथारा में मनुष्य आत्मचिंतन करता है और स्वयं पर दृष्टि रखता है। अगर हम यूं कहेंगे कि शांति समाधि का नाम ही संथारा है तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि परमेश्वरी देवी बेहद पुण्य आत्मा है जिन्होंने संथारा ग्रहण किया है। उनकी मंगलभावना है कि परमेश्वरी देवी का संथारा सुखसाता पूर्वक चलता रहे और उनकी आत्मा का कल्याण हो।
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