जीवात्मा अपने कर्मों के कारण ही सुख-दुख पाती है: नवीन चन्द्र महाराज

एस• के• मित्तल 
सफीदों,       नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में चल रहे चातुर्मास के अंतर्गत धर्मसभा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि मन में व्याप्त शंकाओं व दुखों का समाधान केवल भगवान का नाम लेना है। जो भगवान व गुरूओं की स्तुति करता है वह सब दुखों को दूर हो जाता है। भगवान के नाम का गुणगान करने के साथ-साथ गुरूओं का सानिध्य प्राप्त कर लेना भूले-भटके जीवन को दिशा देने का कार्य करता है।
भाव शुद्धि भी मनुष्य के दुखों को हर लेने में बहुत सहायक होती है। उन्होंने कहा कि जीव आत्मा अपने कर्मों के कारण ही सुख-दुख पाती है और इस संसार में जन्म मरण के चक्कर लगाती है। जो हम कर्म करते हैं उसके अनुसार हम सुख और दुख पाते हैं। अगर हम नीम का बीज बोएंगे तो आम नहीं पाएंगे। नीम के पेड़ से आम नहीं केवल निंबोली ही मिलनी है। उन्होंने कहा कि आत्मा चित स्वरूपी है। अच्छे व बुरे कर्मों के कारण आत्मा व हल्की होती है। मनुष्य के जीवन में सबसे पहले धर्म होना चाहिए। जीवों व अहसायों के प्रति दया और सेवा ही असली धर्म है। उन्होंने कहा कि शुद्ध कर्म व आचार-व्यवहार ही आस्तिकता की पहचान है। गुरुओं व माता-पिता के प्रति सेवा का भाव रखने वाला, सत्य बोलने वाला और धर्म को मानने वाला ही आस्तिक है।
गुरूदेवों ने फरमाया कि आंधी आने के समय घर की खिड़की व दरवाजे खुले होंगे तो धूल-मिट्टी आएगी ही आएगी परंतु समझदार व्यक्ति उस समय घर के खिड़की दरवाजे बंद कर लेता है। इसी प्रकार जीवन में कुछ गलत होने, मन भटकने, गलत दिशा में सोच चले जाने पर मनुष्य गुरुओं की शरण में जाकर ज्ञान प्राप्त कर लेता है। उन्होंने कहा कि आत्मा कर्मों के बंधन को तोडऩे के लिए संयम के मार्ग पर चलती है। कर्म बंधन हर जगह है और कर्म बंधन आत्मा को जकड़ लेते हैं। राग द्वेष आत्मा को रोगों से ग्रसित कर लेते हैं। सुख-दुख शरीर का हिस्सा है। हमारे शरीर के अंदर अनेक प्रकार के विषय भरे हुए हैं। इन विषयों को दूर करने के लिए हमें आत्म चिंतन करना चाहिए।

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