दो दर्जन लोगों ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती से ग्रहण की दीक्षा
असंख्य श्रद्धालुओं ने लिया प्रात:कालीन पूजा-अर्चना में भाग
एस• के• मित्तल
सफीदों, पौराणिक नगरी सफीदों में ज्योतिष्पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 श्री जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज के प्रवास के दूसरे दिन विशेष दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। शंकराचार्य सम्मान समिति के अध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल के निवास पर करीब दो दर्जन लोगों ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती से दीक्षा ग्रहण की।
दीक्षा कार्यक्रम से पूर्व शंकराचार्य द्वारा प्रात:कालीन विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया। इस पूजा में नगर के असंख्य श्रद्धालुओं ने भाग लेकर भगवान व शंकराचार्य का आशीर्वाद ग्रहण किया। शंकराचार्य ने अपने हाथों से श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित करके उनके मंगल की कामना की। इस अवसर श्रद्धालुओं ने उसने धर्म और मनुष्य जीवन को लेकर अनेक प्रश्र किए। जिस पर शंकराचार्य ने उन प्रश्नों का शास्त्रोक्त जवाब देकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया। शंकराचार्य ने श्रद्धालुओं को सनातन धर्म की सभ्यता व संस्कृति की भली भांति जानकारी प्रदान की।
उसके उपरांत शंकराचार्य नगर की स्वामी गौरक्षानंद गौशाला में पहुंचे। इस मौके पर गौशाला के प्रधान पालेराम राठी ने पूरी कार्यकारिणी के साथ शंकराचार्य पादुका पूजन किया। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने गौशाला का अवलोकन करके गौपूजन किया तथा गायों को ग्रास खिलाया। अपने संबोधन में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि मनुष्य को जीवन में कभी भी खाली नहीं बैठना चाहिए। हमेशा अपने आप को व्यस्त रखना चाहिए। अगर हम व्यस्त रहेंगे तो मस्त रहेंगे और तनाव व व्याधियों से बचे रहेंगे। आज के भौतिकवादी युग में इंसान अवसाद से ग्रस्त है।
इस अवसाद या टैंशन से छुटकारा पाने का एक ही उपाय अपने आप को सद्कर्मों में व्यस्त कर लेना है और सकारात्मक सोच व संगत की ओर अपने आप को बढ़ाना है। मनुष्य को कभी भी अपने आप पर नकारात्मकता को हावी नहीं होने देना चाहिए। मनुष्य को शुद्ध व सात्विक जीवन जीते हुए प्रभू की भक्ति में लीन हो जाना चाहिए। इसके अलावा हमें मांस, मदिरा, अंडा, प्याज, लहसुन, नशे व अन्य अभाज्य पदार्थों के सेवन से दूर रहना चाहिए। शंकराचार्य ने कहा कि मानव को सदैव सत्य व धर्म के पथ पर चलते हुए राष्ट्र व समाज कल्याण में कार्य करना चाहिए। इसके अलावा भारत की प्राचीन सनातनी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए युवा पीढ़ी को भी अपने गौरवमयी सनातन सभ्यता व परंपरा से अवगत करवाएं।