केवल एक मुख्य अध्यापक के भरोस चल रहा मलिकपुर गांव का राजकीय उच्च विद्यालय

 

रोष स्वरूप ग्रामीणों ने स्कूल गेट पर जड़ा ताला

ग्रामीण – स्कूल में अध्यापक नहीं आए तो करेंगे सफीदों का खानसर चौंक जाम

 

एस• के• मित्तल 

सफीदों, उपमंडल के गांव मलिकपुर के राजकीय उच्च विद्यालय में मुख्य अध्यापक के सिवाय अन्य किसी अध्यापक के ना होने से यह स्कूल एक प्रकार से अध्यापक विहीन हो गया है। जिसके रोषस्वरूप ग्रामीणों ने शनिवार सुबह स्कूल गेट पर ताला जड़ दिया और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

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प्रदर्शन में ग्रामीणों के साथ-साथ गांव की महिलाएं व इस स्कूल में पढऩे वाले बच्चे भी शामिल रहे। ग्रामीण मोहब्बत सिंह, गुरचरण सिंह, सतनाम सिंह, मेजर सिंह, नरेश,ख् राममेहर, गौरव, सतनाम, सुभाष, अमृतपाल सिंह, वीरमति, कुसुम, शीला, कविता, महिंद्रो व सुनीत समेत अन्य ग्रामीणों का कहना था कि सरकार ने पहले तो उनके गांव का स्कूल 12वीं से घटाकर 10वीं का कर दिया लेकिन उसके बावजूद भी यहां पर अध्यापकों का टोटा पैदा हो गया है। यहां पर अब सिर्फ मुख्य अध्यापक है जोकि स्कूल के प्रबंधन व अधिकारियों की मीटिंगों में व्यस्त रहते हैं। मुख्य अध्यापक ने अध्यापकों की कमी के चलते 8वीं से 10वीं तक के बच्चों की छुट्टी कर दी है।

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ग्रामीणों का कहना था कि इस स्कूल में गरीब परिवारों के करीब 160 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन स्कूल में अध्यापक ना होने के कारण उनके भविष्य पर तलवार लटक गई है। उन्होंने बताया कि पहले यह स्कूल बढिय़ा चल रहा था लेकिन जब से सरकार की तबादला नीति आई है तब से यहां के अध्यापक अपना-अपना तबादला करवाकर अन्यत्र कहीं चले गए हैं। हालात ये हो गए है कि यह स्कूल बंद होने के कगार पर पहुंच गया है। उन्होंने बताया कि वे अपने बच्चों को पास लगते गांव रोहढ़ में दाखिल करवाने के लिए गए थे लेकिन उन्होंने यह कहकर दाखिला लेने से साफ मना कर दिया कि स्कूल में दाखिले की कैपेसिटी पूरी हो चुकी है। किसी तरह कह-सुनकर वहां पर कुछ बच्चों के एडमिशन तो जरूर हुए लेकिन उन्हें वहां पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बच्चों को वहां पर जाने के लिए कोई साधन नहीं है। सबसे ज्यादा दिक्कत लड़कियों को आ रही है।

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उन्होंने कहा कि अगर बच्चे स्कूल नहीं गए तो उनकी पढ़ाई का तो नुकसान होगा ही साथ ही साथ वे खाली बैठे लड़ाई-झगड़ों व अन्य दुव्र्यसनों का शिकार हो सकते हैं। वही बच्चों के पेपर भी सिर पर है लेकिन पढ़ाने वाला कोई भी नहीं है। अगर उन्हें नहीं पढ़ाया गया तो वे पेपर में क्या खाक लिखकर आएंगे और उसका परिणाम यह होगा कि वे फेल हो जाएंगे। इस स्कूल में पढऩे वाले बच्चे गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते है। परिजनों ने बताया कि हमारी इतनी गुंजाईस नहीं है कि हम प्राईवेट स्कूलों की भारी-भरकम फीस अदा कर सकें। वे लोगों के यहां छोटे-मोटे कार्य व मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह से परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। ग्रामीणों व परिजनों ने सरकार से मांग की कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए तत्काल स्कूल में अध्यापकों की नियुक्ति की जाए। अगर स्थाई पोस्टिंग नहीं होती है तो कुछ समय के लिए यहां पर डेपुटेशन पर अध्यापक भेजे जाएं ताकि बच्चों का भविष्य खराब ना हो। इसके अलावा ग्रामीणों में बताया कि इस स्कूल में भारी अवस्थाएं हैं। स्कूल की बिल्डिंग कंडम है, पीने के पानी, शौचालय, बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है।

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स्कूल में जरनेटर तो रखा हुआ है लेकिन वह कभी भी चलता हुआ नहीं दिखाई दिया। स्कूल का ग्राउंड में बड़ी-बड़ी जंगली घास उगी हुई हुई है व बच्चों को जहरीले कीटों से भारी खतरा बना हुआ है। ग्रामीणों व परिजनों ने बताया कि वे इस मामले में सफीदों के एसडीएम सत्यवान मान व सरकार के नुमाइंदों से कई बार मिल चुके हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है। ग्रामीणों ने साफ किया कि सरकार व प्रशासन ने अगर 2 या 4 दिन के भीतर स्कूल में अध्यापक नहीं भेजें तो वे पूरे गांव को साथ लेकर सफीदों के खानसर चौंक पर धरना देते हुए जाम करने को मजबूर होंगे, जिसकी सारी जिम्मेवारी शासन और प्रशासन की होगी। इस मामले में स्कूल के मुख्य अध्यापक रमेश चंद्र का कहना है कि यह समस्या एक सितंबर से उस वक्त उत्पन्न हुई जब अध्यापक यहां से तबादला करवाकर चले गए।

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मैं खुद और एक कलर्क यहां पर है। मुझ अकेले से स्कूल का संख्चालन करना मुश्किल हो गया है। स्कूल में अध्यापकों की 8 सीटें खाली हैं। वे इस संबंध में बीईओ, डीईओ व शिक्षा विभाग के डायरेक्टर को इस बाबत लिख चुके हैं। सबसे मुश्किल की बात यह है कि बच्चों की परिक्षाएं 29 सिंतबर से शुरू होने जा रहीं है। इस गांव में प्राईमरी के 3 अन्य स्कूल हैं। वे ख्वहां पर जाकर कह चुके है कि कुछ अध्यापक यहां पर आकर बच्चों को पढ़ा लें लेकिन कोई आने को तैयार नहीं है।

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