किसान 19 को चंडीगढ़ में CM आवास पर करेंगे पंचायत: गन्ना प्रति एकड़ का खर्च 80 हजार, फसल निकलती है 1. 25 लाख की, इसलिए मांग रहे किसान भाव

 

 

कहते थे, गन्ना उत्पादक किसान कभी घाटे में नहीं रहता। यह बात अब गुजरे जमाने की बात हो गई। बढ़ती महंगाई ने काश्त का खर्च बढ़ा दिया। औसतन एक एकड़ गन्ने की खेती पर किसान का 80 हजार रुपए तक खर्च आ जाता है। उत्पादन यदि बहुत अच्छा हुआ तो किसान को एक लाख की फसल निकाल पाता है। यानी की किसान को एक साल की मेहनत के बाद मात्र 20 हजार रुपए बचते हैं। वह भी तब जब यदि भुगतान समय पर हो जाए।गगसीना गांव के किसान ईश्वर संधू 58 वर्षीय कहते हैं, गन्ना जितना मीठा होगा, उसकी मिठास में किसान का पसीना उतना ही ज्यादा होगा। हम दाम बढ़ाने की मांग नहीं कर रहे हैं, हमें तो अपने पसीने का हक चाहिए। जो हमें नहीं मिल रहा है।

किसान 19 को चंडीगढ़ में CM आवास पर करेंगे पंचायत: गन्ना प्रति एकड़ का खर्च 80 हजार, फसल निकलती है 1. 25 लाख की, इसलिए मांग रहे किसान भाव

जानकारी देते गन्ना किसान ईश्वर सिंह संधू।

यही वजह है कि इन दिनों प्रदेश के गन्ना उत्पादक किसान भाव बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। यह मांग लगातार जोर पकड़ रही है। लेकिन सरकार ने इस ओर अभी तक ध्यान नहीं दिया। अब किसानों ने तय किया कि इस माह की 19 तारीख को CM मनोहर लाल के कबीर कुटी आवास पर किसान पंचों की पंचायत करेंगे। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष रतन मान ने बताया कि गन्ने के दाम बढ़ाने के बिना किसान का गुजारा ही नहीं हो सकता। यदि दाम 450 रुपए प्रति क्विंटल हो तो ही खर्च पूरा हो पाएगा। इससे कम दाम पर कैसे किसान का गुजारा हो सकता है? गन्ने का भाव इस वक्त 362 रुपए है। किसान ईश्वर सिंह ने बताया कि गन्ने की खेती की इनपुट लागत तेजी से बढ़ रही है। बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है, डीजल के दाम बढ़ने से खेती महंगी हो गई। रही सही कसर लेबर की कमी ने पूरी कर दी है। औसतन प्रति एकड़ 28 से 30 हजार रुपए लेबर का खर्च आ जाता है।

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किसान पंचायत को संबोधित करते BKU प्रदेश अध्यक्ष रतनमान।

किसान पंचायत को संबोधित करते BKU प्रदेश अध्यक्ष रतनमान।

गन्ने की खेती का गणित

किसान ईश्वर सिंह ने बताया कि 1 एकड गन्ना उगाने के लिए करीब 80 हजार रुपए खर्च आता है। पहले तो खेत की बुआई करने में करीब 4 हजार रुपए का खर्च आता है।

2. एक एकड में गन्ने का बिज की लगात करीब 35 क्विंटल, करीब 14 हजार रुपए का खर्च।

3. गन्ने की बिजाई की लेबर साढ़े 3 हजार रुपए।

4. DAP खाद का बैग साढ़े 14 सौ रुपए।

5. पूरी फसल पर किटनाशक दवाईयों का खर्च 25 से 30 हजार रुपए।

6. दो से तीन बार होती गन्ने की बंधाई दो बार की 3200 रुपए व अन्य एक बार 1300 रुपए।

7.गन्ने की फसल की छिलाई 50 रुपए प्रति क्विंटल यानी एक एकड़ में 350 क्विंटल गन्ने की निकलने की औसत भी माने तो 17500 रुपए छिलाई की लेबर।

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8. खेत से मिल तक ले जाने की किराया 1 चक्कर का 5 हजार रुपए, अगर तीन चक्कर होते है तो 15 हजार रुपए टैक्टर का किराया।

9. एक एंकड में गन्ने की औसत 350 अगर गन्ने की फसल बिमारी की चपेट में आ गई तो 250 से 300 रुपए प्रति क्विंटल निकलती है। यानी 1 लाख 25 से 30 हजार रुपए का होता है वो भी पेमेंट तब आती है जब गन्ने का मिल में गए हुए 1 माह हो जाता है।

10. अगर कोई किसान ठेके पर जमीन को लेकर गन्ने की फसल को करता है तो 55 हजार रुपए साल का ठेका जाता है। उस किसान को कुछ भी नहीं बचता। इसलिए गन्ने की फसल के रेट बढ़ाने की मांग किसान रहे है।

किसान के खेत में गन्ने की बंधाई करता मजदूर।

किसान के खेत में गन्ने की बंधाई करता मजदूर।

एक साल की होती है गन्न की खेती

सबसे मुश्किल खेती है गन्ने की ईश्वर सिंह ने बताया कि गन्ने की खेती एक साल की होती है। यह सबसे मुश्किल खेती है। 60 प्रतिशत काम हाथ से करना पड़ता है। इसके लिए लेबर चाहिए होती है। फसल में पहले बीमारी नहीं आती थी, पांच साल से लगातार बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है। अब सबसे ज्यादा रिस्क भी रहता है। क्योंकि एक साल के बाद ही पता चलता है कि नुकसान हो रहा या नहीं। हम खेती छोड़ भी दें, लेकिन फिर उगाए क्या? यह सवाल भी सामने आता है। इसलिए घाटे की खेती कर रहे हैं। दाम यदि बढ़ जाए तो कुछ राहत मिल सकती है। सरकार को हमारी इस मांग की ओर ध्यान देना चाहिए।

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पंजाब दे रहा देश में सबसे ज्यादा भाव

पिछले साल हरियाणा में गन्ने के दाम में 12 रुपए की बढ़ोतरी कर 362 रुपये प्रति क्विंटल देने का निर्णय लिया है। पंजाब में इस वक्त 380 रुपए मिल रहा है। जो कि हरियाणा से ज्यादा है। गन्ना सीजन 2022-23 के लिए पंजाब सरकार ने अक्टूबर 2022 के पहले सप्ताह में ही गन्ने का भाव 20 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ा दिया था। इसके बाद वहां गन्ने का रेट देश में सबसे अधिक 380 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। किसानों ने कहा कि हर छोटी छोटी बात पर पंजाब से तुलना करने वाले सीएम अब भाव के अंतर पर चुप क्यों है? पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार गन्ने का सबसे ज्यादा रेट दे रही है। कैसे? इस पर हरियाणा सरकार को मंथन करना चाहिए। यूं भी पंजाब व हरियाणा में गन्ने की खेती और मिलों की आर्थिक स्थिति पर ज्यादा अंतर नहीं है।केंद्र सरकार ने बढ़ाए 15 रुपएकेंद्र ने FRP 15 रुपये बढ़ाते हुए दाम 305 रुपये प्रति क्विंटल तय किए गन्ने के दाम दो तरह से तय होते हैं। केंद्र सरकार अपनी ओर से दाम तय करती है। इसे गन्ने का लाभकारी मूल्य बोला जाता है। जिसे एफआरपी के नाम से जाना जाता है। इस साल के लिए केंद्र ने गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 15 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 305 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य अपने स्वयं के गन्ने की कीमत तय करते हैं जिसे ‘राज्य सलाहकार मूल्य’ (एमएसएपी) कहा जाता है, जो आमतौर पर केंद्र के एफआरपी से अधिक होता है।

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किसानों को संबोधित करते BKU अध्यक्ष रतनमान।

किसानों को संबोधित करते BKU अध्यक्ष रतनमान।

चीनी मिलों को आती है दिक्कत

केंद्र के दाम से ज्यादा जब राज्य सरकार गन्ने का दाम तय करती है तो चीनी मिलो को दिक्कत आती है। क्योंकि चीनी के दाम केंद्र के रेट पर आधारित होते हैं। यह भी एक कारण है कि चीनी मिल भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि चीनी के दाम बढ़ाए जाए। कैबिनेट ने 305 रुपये प्रति क्विंटल एफआरपी को 10.25 फीसदी की बेसिक रिकवरी रेट से जोड़ा गया है। यानी यदि गन्ने से 10. 25 फीसदी की चीनी वसूली होती है तो यह दाम मिलेगा। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने खाद्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि चीनी के एमएसपी में वृद्धि के बिना गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी करने से चीनी मिलों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।क्या इस समस्या का समाधान है?

क्या कहते है शोध कर्ता

एमएससी के स्टूडेंट और हरियाणा में गन्ना उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति पर शोध कर रहे रोहित चौहान ने बताया कि समस्या यह है कि चीनी मिल भी घाटे में हैं, किसान भी। सरकार के पास इस घाटे को पाटने का कोई उपाय नहीं है। ऐसा नहीं है कि समस्या का समाधान नहीं है, समाधान हो सकता है। लेकिन इस दिशा में काम नहीं हो रहा है। किसानों के पास गन्ने की आधुनिक किस्म नहीं पहुंच रही है। अभी भी किसान गन्ने की खेती में दशकों पुरानी विधि अपना रहे हैं। इसे अपडेट करने की जरूरत है। हरियाणा सरकार के पास गन्ने की कोई नीति ही नहीं है।चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति कैसे सुधारे इस पर बयान तो खूब दिए गए, हकीकत में कुछ नहीं हो रहा है। गन्ने के बायो प्रोडक्ट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, इससे चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। इथेनॉल प्लांट बढ़ाने चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कोऑपरेटिव सेक्टर के चीनी मिलों में पनप रही राजनीति से मुक्त करना होगा। यहां स्टाफ, मशीनरी और तकनीक पर काम करना होगा। नुकसान का रोना रोने से कोई लाभ होने वाला नहीं है, इसके लिए सरकार को लंबी और अल्प अवधि की योजना बनानी होगी। तब गन्ना उत्पादक किसान और चीनी मिल दोनो को बचाया जा सकता है। अन्यथा यह तो सिर्फ राजनीति है। जो लंबे समय से हो रही है, आगे भी होती रहेगी।

 

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