पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। आज से पितृ पक्ष शुरू हो गया है। अब अगले 16 दिन तक के पितरों के निमित्त कार्य किए जाएगें। इन दिनों में दिया गया दान, भोजन वस्त्र आदि संबंधित तिथि के पितृ को ही प्राप्त होगें। और जिन पितरों की तिथि याद न हो, उनके निमित्त अमावस्या तिथि को श्राद्ध होगा।
मान्यता है कि 10 शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्र मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। इन दिनों में मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में पितरों को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। पितृ पक्ष में पूजा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पंडित राम भज वत्स।
मां कृपा ज्योतिष एवं अनुसंधान केंद्र के पंडित राम भज वत्स ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है। आश्विन मास की अमावस्या को समाप्त होते हैं। इस साल पितृ पक्ष आज यानी 10 सितंबर से शुरू होंगे। पितृ पक्ष का समापन 25 सितंबर होगा। इस दिन आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है।
श्राद्धों में नहीं होते शादी-विवाह
मां कृपा ज्योतिष एवं अनुसंधान केंद्र के पंडित राम भज वत्स ने बताया कि पितरों के समर्पित इन दिनों में हर दिन उनके लिए खाना निकाला जाता है। इसके साथ ही उनकी तिथि पर ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है। इन 16 दिनों में कोई शुभ कार्य जैसे, गृह प्रवेश, कान छेदन, मुंडन, शादी, विवाह नहीं कराए जाते। इसके साथ ही इन दिनों में न कोई नया कपड़ा खरीदा जाता और न ही पहना जाता है। पितृ पक्ष में लोग अपने पितरों के तर्पण के लिए पिंडदान, हवन भी करते हैं।
श्राद्ध में भोजन करता कवा फाईल फोटो।
पितृ पक्ष में इन बातों का रखे ध्यान
पंडित राम भज वत्स बताया कि जिनके पिता के मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध पितृ विसर्जन में करें। सिर का मुंडन पितृ पक्ष के भीतर या तिथि पर नहीं करना चाहिए , क्योंकि धर्मसिंधु में यह बात कही गयी है कि पितृ पक्ष में सिर के बाल जो भी गिरते है वो पितरों के मुख में जातें है अगर कोई भूल जाए तो पितृ विसर्जन के दिन अपराह्न काल में बाल बनवाएं ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे कुल की वृद्धि व यश कीर्ति लाभ आरोग्यता व मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
10 से 25 सितंबर तक श्राद्ध
10 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध (शुक्ल पूर्णिमा), प्रतिपदा श्राद्ध (कृष्ण प्रतिपदा)
11 सितंबर- आश्निव, कृष्ण द्वितीया
12 सितंबर- आश्विन, कृष्ण तृतीया
13 सितंबर- आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
14 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पंचमी
15 सितंबर- आश्विन,कृष्ण षष्ठी
16 सितंबर- आश्विन,कृष्ण सप्तमी
18 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अष्टमी
19 सितंबर- आश्विन,कृष्ण नवमी
20 सितंबर- आश्विन,कृष्ण दशमी
21 सितंबर- आश्विन,कृष्ण एकादशी
22 सितंबर- आश्विन,कृष्ण द्वादशी
23 सितंबर- आश्विन,कृष्ण त्रयोदशी
24 सितंबर- आश्विन,कृष्ण चतुर्दशी
25 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अमावस्या
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