ईश्वर के आदर्शों पर चलने वाला व्यक्ति आस्तिक है: नवीन चंद्र महाराज

एस• के• मित्तल 
सफीदों,       नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि जो व्यक्ति धर्म को मानता है, सबके प्रति दया का भाव रखता है, माता-पिता की सेवा करता है, जिसका आचार-व्यवहार शुद्ध है, सत्य बोलने वाला है वहीं आस्तिक है। आस्तिकता का अर्थ ईश्वर को मानना, उसका अनुयायी होना और उसके आदर्शों और निर्देशों के अनुसार चलना है। आस्तिक व्यक्ति के लिए जड़ चेतनमय सारा संसार ईश्वर रूप ही होता है।
वह ईश्वर को अपने से और अपने को ईश्वर से भिन्न नहीं मानता। ईश्वर के प्रति आस्थावान होने से उसमें संकट सहने की शक्ति आ जाती है। जब सारे मित्रों और संबंधियों ने साथ छोड़ दिया हो, मनुष्य हर तरह से असहाय हो गया हो। ऐसे समय में यही आस्तिकता बहुत बड़ी सहायता बन जाती है क्योंकि भगवान उसकी पग-पग पर सहायता करते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा शत् चित्त स्वरूपी है और आत्मा कर्मो के कारण हल्की व भारी होती है। जो भी कर्म हम करते हैं उसका फल भविष्य में हमारे सामने आता है। जो कर्म हम करते हैं वह कर्म बीज है। कर्म ने कितनी गहराई तक प्रभाव डाला है उस स्तर से कर्म का फल प्राप्त होता है।
किसी भी जीवात्मा के कर्म व कर्मफल कदापि समाप्त नहीं होते। ये भी आत्मा के समान अनादि व अनंत हैं। कुछ कर्मों का फल आत्मा वर्तमान शरीर में रहकर भोग लेती है और शेष कर्मों का फल अगले जन्म में भोगना पड़ता है। इसलिए मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए और बुरे कर्मों से सदैव बचना चाहिए।

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