नैनो यूरिया की 500 मी०ली० की बोतल एक यूरिया बैग के बराबर करेगी काम – ओमकार सिंह
एस• के• मित्तल
जींद, इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) के हरियाणा राज्य कार्यालय के डीजीएम ओमकार सिंह ने सोमवार को स्थानीय अर्बन इस्टेट स्थित दी जींद सैंट्रल कोआपरेटिव लिमिटेड बैंक में इफको नैनो यूरिया तरल को लेकर पत्रकार वार्ता की। उन्होंने इफको नैनो यूरिया तरल के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह तरल यूरिया किसानों के लिए एक नया और अनोखा उर्वरक है जिसे दुनिया में पहली बार इफको द्वारा गुजरात के कलोल स्थित नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में इफको की पेटेंटेड तकनीक से विकसित किया गया है। इस मौके पर जिला के फिल्ड ऑफिसर अभय सिंह तथा टी एम धनांज्य त्रिपाठी भी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि इफको नैनो यूरिया आधुनिक उत्पाद है। आज के समय की जरूरत है कि हम पर्यावरण, मृदा, वायु और जल को स्वच्छ और सुरक्षित रखते हुए आने वाली पीढिय़ों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करें। गुजरात के कलोल एवं उत्तर प्रदेश के आंवला और फूलपुर स्थित इफको की इकाइयों में नैनो यूरिया संयंत्रों के निर्माण की प्रक्रिया पहले ही शुरू की जा चुकी है। उन्होंने नैनो यूरिया तरल के उत्पादन के बारे में बताया कि वर्ष 2024 तक इफको नैनो यूरिया की 34 हजार करोड़ बोतलों का उत्पादन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि गत दो वर्षो में जींद जिला के किसानों द्वारा नैनो यूरिया की 90 हजार बोटलों का प्रयोग किया गया जिसका नतीजा यह रहा कि 90 प्रतिशत किसानों ने इस नैनो यूरिया की दौबारा से मांग की है। यह सामान्य यूरिया बैग की अपेक्षा 10 प्रतिशत सस्ता भी है। उन्होंने बताया कि इफको जल्द ही इफको डीएपी नैनो की बोतल भी किसानों तक पंहुचाने का काम करेगी जो डीएपी बैग के मुकाबले काफी सस्ती होगी। इसके अलावा ड्रोन स्प्रे मशीन को किसानों तक जल्द उपलब्ध करवाने के लिए राज्य के किसानों व विभागीय कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
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इफको नैनो यूरिया है ईको-फ्रेंडली
डीजीएम ने बताया कि लगातार पेस्टीसाईड के सप्रे से खेतों में हो रहे पोषक तत्वों के नुकसान से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर असर हो रहा है। इसे नैनो यूरिया के प्रयोग से कम किया जा सकता है। भारत में खपत होने वाले कुल नाइट्रोजन उर्वरकों में से 82 प्रतिशत हिस्सा यूरिया का है और पिछले कुछ वर्षों में इसकी खपत में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है। यूरिया के लगभग 30-50 प्रतिशत नाइट्रोजन का उपयोग पौधों द्वारा किया जाता है और बाकी लीचिंग, वाष्पीकरण और रन ऑफ के परिणामस्वरूप त्वरित रासायनिक परिवर्तन के कारण बर्बाद हो जाता है, जिससे पोषक तत्वों के उपयोग की क्षमता कम हो जाती है। यूरिया के अतिरिक्त उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड नामक ग्रीनहाउस गैस बनता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया तरल पर्यावरण हितैषी, उच्च पोषक तत्व उपयोग क्षमता वाला एक अनोखा उर्वरक है जो लंबे समय में प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग कम करने की दिशा में एक टिकाऊ समाधान है, क्योंकि यह नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम कर देता है तथा मृदा, वायु एवं जल निकायों को दूषित नहीं करता है। ऐसे में यह पारंपरिक यूरिया का एक कारगर विकल्प है। उन्होंने बताया कि इफको नैनो यूरिया के एक कण का आकार लगभग 30 नैनोमीटर होता है। इसके अतिरिक्त, अपने अति-सूक्ष्म आकार और सतही विशेषताओं के कारण नैनो यूरिया को पत्तियों पर छिडके जाने से पौधों द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है। पौधों के जिन भागों में नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, ये कण वहां पहुंचकर संतुलित मात्रा में पोषक तत्व प्रदान करते हैं। डीजीएम ने बताया कि सामान्य यूरिया के प्रयोग से उत्पन्न पर्यावरण संबंधी मौजूदा समस्याओं जैसे ग्रीनहाउस गैस, नाइट्रस ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जन, मृदा अम्लीकरण तथा जल निकायों के यूट्रोफिकेशन आदि के समाधान में नैनो यूरिया तरल पूर्णत: सक्षम है।
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पौधे की नाइट्रोजन आवश्यकता को पूरा करने के लिए सामान्य यूरिया उर्वरक की तुलना में इसकी कम मात्रा की आवश्यकता होती है। आईसीएआर के अनुसंधान संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों से कराये गये प्रभावकारिता परीक्षण में यह सिद्ध हुआ है कि नैनो यूरिया (तरल) न केवल फसल उत्पादकता को बढ़ाता है बल्कि यह सामान्य यूरिया की आवश्यकता को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है। यही नहीं, नैनो यूरिया(तरल) के उपयोग से उपज, बायोमास, मृदा स्वास्थ्य और उपज की पोषण गुणवत्ता में भी सुधार होता है।
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