इंसान को अनावश्यक आकांक्षाएं दुखी करती हैं: मुनि नवीन चंद्र

एस• के• मित्तल 
सफीदों,     इंसान को आवश्यकता इतना दुखी नहीं करती जितनी अनावश्यक आकांक्षाएं दुखी करती हैं। उक्त उद्गार मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने प्रकट किए। वे नगर की जैन स्थानक में प्रात:कालीन धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि घर में रहने वाले व्यक्ति को किसी ना किसी चीज की जरूरत होती है और वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए झूट, कपट और हिंसा का सहारा लेता है जोकि गलत है। इस प्रकार का व्यक्ति सच्चा श्रावक कहलाने का हकदारी नहीं है।
मनुष्य को कहीं ना कहीं अपने आप में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अगर हम घर में पाप करते हैं तो धर्म स्थान पर जाकर उसका निवारण हो जाता है। यदि हम धर्म स्थान पर जाकर भी पाप करते हैं तो उसका निवारण कहीं पर भी नहीं होगा। जिस जगह पर अच्छी तरह से नजर पड़ जाए तो मानों वहां पर भलीभांति सफाई है। ठीक इसी प्रकार जीवन के जिस हिस्से पर गुरूओं व माता-पिता की नजर पड़ जाए तो वह जीवन सुंदर व शुद्ध हो जाता है। उन्होंने कहा कि अगर हमारी दृष्टि बदलेगी तो सृष्टि भी जरूर बदलेगी। मनुष्य को अपनी नियत व सोच को सदैव साफ-सुथरा व ऊंचा रखना चाहिए।
मन में जीवों के प्रति दया का भाव की दृष्टि रखनी चाहिए। मनुष्य का कमाना बुरा नहीं है लेकिन गलत तरीके से कमाना बुरा है। हमारी रोजी और रोटी दोनों ही सही व शुद्ध होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य का चिंतन व खानपान शुभ हो तो उसे विषय वासनाओं व बीमारियों से मुक्ति मिलती है।

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