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एस• के• मित्तल
सफीदों, सुमिरन करने के लिए किसी मुहुर्त की आवश्यता नहीं है। उक्त उद्गार संत सुखदेवानंद महाराज ने प्रकट किए। वे नगर की महाराजा सूरसैनी धर्मशाला में परमहंस श्री योग दरबार कुटिया शांत सरोवर के तत्वाधान में श्री योग शब्दानंद महाराज के आशीर्वाद एवं स्वामी अनुभवानंद महाराज की असीम कृपा से आयोजित वार्षिक सत्संग समारोह के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। संत सुखदेवानंद महाराज ने फरमाया कि मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ व मोह का त्यागकर करके सच्चाई और सादगी भरा जीवन जीना चाहिए। राम की महिमा अपरंपार है और राम से बड़ा कोई नाम नहीं है। जीवन का आधार ही राम नाम है। राम सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि सबसे बड़ा मंत्र है। सुमिरन, सत्संग और सेवा जैसे कार्य करने से मनुष्य जन्म सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि जीव जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा। मार्कडेय ऋषि अल्पायु होने के बावजूद संतों का सानिध्य पाकर दिर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त कर गए थे। उन्होंने कहा कि जीवन में अच्छे कर्म करो, अच्छे कर्मों के करने से भगवान के चरणों में स्थान मिलता है।
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जीवन में कोई भी कर्म करों, उसे सदैव सोच समझकर करना चाहिए। यदि व्यक्ति 4 कदम चलकर सत्संग में जाता है तथा अंत समय में प्रभू सुमिरन करता है, उसे यमराज की ताकत भी हाथ नहीं लगा सकती। जिसने अपने जीवन में सत्संग, सुमिरन तथा सदाचारी जीवन का आश्रय लिया, परमेश्वर ने उसे वंदनीय बना दिया। इस मौके पर प्रधान रामचंद्र माटा, ताराचंद भाटिया, पंकज भाटिया, घनश्याम भाटिया, सक्षम भाटिया, सरोज भाटिया, कपिल शर्मा, डा. राजेंद्र भाटिया, नितिन पाहवा व टेकचंद बवेजा सहित काफी तादाद में लोग मौजूद थे।
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