एस• के• मित्तल
सफीदों, ऐतिहासिक नगरी सफीदों उस वक्त छोटी कांशी बन गई जब क्षेत्र के मंदिरों व तीथों पर भव्य दीपदान हुआ। श्रद्धालुओं के द्वारा किए गए बढ़-चढकर दीपदान से सभी मंदिर व तीर्थ रोशनी में नहाकर जगमगा उठे और कांशी जैसा माहौल पैदा हो गया। कर्मकाण्डी ब्राह्मण परिषद के एक बार आह्वान करने मात्र से ही क्षेत्रभर के श्रद्धालु माता-बहनों सहित सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा नगर के नागक्षेत्र सरोवर, श्री हंसराज तीर्थ, गीता मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव मंदिर, संकीर्तन भवन, श्री सतनारायण मंदिर, नुरसत मंदिर, बाबा रमता राम मंदिर, साईं मंदिर, राधेश्याम मंदिर, हनुमान मंदिर व खेड़ा खेमावती गांव के श्रीराम हनुमान मंदिर, बाहरली माता मंदिर, काली मंदिर व बुढ़ा खेड़ा गांव के गुरू वशिष्ठ मंदिर व अन्य मंदिरों सहित जोरदार दीपदान करके प्रकाश किया।
सफीदों, ऐतिहासिक नगरी सफीदों उस वक्त छोटी कांशी बन गई जब क्षेत्र के मंदिरों व तीथों पर भव्य दीपदान हुआ। श्रद्धालुओं के द्वारा किए गए बढ़-चढकर दीपदान से सभी मंदिर व तीर्थ रोशनी में नहाकर जगमगा उठे और कांशी जैसा माहौल पैदा हो गया। कर्मकाण्डी ब्राह्मण परिषद के एक बार आह्वान करने मात्र से ही क्षेत्रभर के श्रद्धालु माता-बहनों सहित सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं द्वारा नगर के नागक्षेत्र सरोवर, श्री हंसराज तीर्थ, गीता मंदिर, दुर्गा मंदिर, शिव मंदिर, संकीर्तन भवन, श्री सतनारायण मंदिर, नुरसत मंदिर, बाबा रमता राम मंदिर, साईं मंदिर, राधेश्याम मंदिर, हनुमान मंदिर व खेड़ा खेमावती गांव के श्रीराम हनुमान मंदिर, बाहरली माता मंदिर, काली मंदिर व बुढ़ा खेड़ा गांव के गुरू वशिष्ठ मंदिर व अन्य मंदिरों सहित जोरदार दीपदान करके प्रकाश किया।
कर्मकाण्डी ब्राह्मण परिषद के प्रतिनिधि संजीव गौत्तम, यतिंद्र कौशिक व अमित भार्गव ने बताया कि देव दिवाली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है। इस पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप मनाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिवजी की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी पहुंचे थे, जहां उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाएं, इसलिए इस त्योहार को रोशनी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन दीपदान करने का विशेष महत्व भी है। देव दीपावली के दिन घरों दिवाली के समान ही दीपक जलाने और किसी तीर्थ या नदी पर दीपदान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।