आत्मा को परमात्मा के चिंतन में लगाना चाहिए: मुनि नवीन चंद्र

एस• के• मित्तल   
सफीदों,    नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि श्रावक वहीं है जो जीवन में संयम और विवेक रखे। अनुव्रत का अर्थ है अपने आप को सीमित करना। जीवन में ध्यान जरूर करें और अहिंसा के नियम का पालन करें। किसी जीव को जान बुझकर ना मारे।
जीवन में झूठ नहीं बोलना चाहिए और चोरी नहीं करनी चाहिए। चोरी चाहे धन की हो और चाहे विचारों की हो। बड़ी उम्र में ब्रह्मचारी बनने की कोशिश करे। परिग्रह हमारे लिए दुख का कारण नहीं बनने चाहिए। हम सूर्य, राहु, केतू समेत सभी ग्रहों का इलाज करते है लेकिन वर्तमान माहौल में परिग्रह 10वां ग्रह है और इससे बचने के लिए हमें प्रयास करने चाहिए। परिग्रह मनुष्य की आत्मा को चारों तरफ से जकड़ लेते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य की इच्छाएं बढ़ने से बढ़ जाएगी और घटाने से घट जाएंगी। इच्छाएं बढ़ने से मन अशांत हो जाता है। शांति के लिए इच्छाओं को घटाना चाहिए।
आत्मा को परमात्मा के चिंतन में लगाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आत्मदर्शन से ही परमात्मा के दर्शन होते हैं। मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य आत्मा का साक्षात्कार करना है और जिस व्यक्ति का आत्मा से साक्षात्कार हो गया तो उसे परमात्मा के भी दर्शन हो जाते हैं।

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